यूं तो मेरे प्यार के किस्से सुनाने की मुझे आदत नहीं है..लेकिन अब जब तुम इतना जोर दे रही हो तो अपनी जिंदगी के बेशकीमती वक्त की कुछ बेशकीमती यादों से रुबरू कराता हूं तुम्हें…हमारी पहली मुलाकात यू कुछ खास नहीं थी..उस पहली मुलाकात में पहली मुलाकात जैसी कोई बात भी नहीं थी..उस रोज तुम्हारे-मेरे साथ बहुत सारे लोग थे..हम सब एक दूसरे के लिए कोई खास मायने भी नहीं रखते थे..साथ हम थे जरुर, पर वो साथ, साथ जैसा ना था..या सिर्फ साथ भर के लिए था..तुम्हें लेकर ना तो दिल में कुछ था और ना दिमाग में..लेकिन तुम्हारी एक बात ने मेरा ध्यान जब तुम्हारी तरफ खींचा तो एक पल के लिए मैं तुम्हें देखता जरुर रहा था..हां लेकिन वो देखना उस वक्त शायद आंखों की तरफ से बेवजह था..भले ही वो उस नजर का बीज ही रहा हो जो बाद में प्यार का पौधा बन गया.. वो जब अचानक तुमने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा तो मुझे कुछ अजीब लगा..हां मुझे बाद में पता चला कि तुमने गलती से अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा था..और फिर कितनी होशियारी के साथ तुमने अपना हाथ हटा भी लिया था..लेकिन तुम्हारा वो स्पर्थ आज भी मुझे मेरे कंधे पर महसूस होता..फिर महीने भर बाद अचानक तुम्हारा मुझसे बात करना..कुछ अजीब था लेकिन ना जाने क्यों अच्छा लगा..और फिर बात करते-करते तुमसे बात करने की आदत हो गई..वो आदत कब जरूरत और कब मोहबब्त में बदल गई समझ में ही नहीं आया..समझ में आय़ा तो सिर्फ इतना की अब तुम्हारे बिना अगर जिया जा सकता है तो सिर्फ तम्हारी यादों के सहारे..वरना जीना बहुत मुश्किल होगा..आज इतने सालों के बाद भी तुम मेरी रूह, मेरी आत्मा में बसी हो.. आज भी तुम्हारा प्यार खून बनकर मेरी रगो में दौड़ रहा है..हर रोज बदलती ख्वाहिशों में से सिर्फ एक बार तुमसे मिलने की ख्वाहिश है जो रोज मेरी दुआओं में रहती है..बस तुमसे एक बार मिलकर बात करने को जी चाहता है..मैंने कहा था तुमसे मुझे प्यार के चक्कर में नहीं पड़ना..मुझे नहीं कुर्बान करनी अपनी रातों की नींद..मेरा चैन और सुकून छीन लिया है..तुमने, तुम्हारे प्यार ने..और उस पहली मुलाकात ने।