जब हम बचपन और किशोरावस्था की सीढ़ियां पार कर युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते है तो जो सबसे कॉमन सवाल हम सब से पूछा जाता है वो शायद ये कि तुम अपनी जिंदगी में करना क्या चाहते हो…मतलब तुम्हारी जिंदगी का मकसद क्या है…कोई मंजिल है जिसे पाने की लालसा हो…आखिर इस जीवन में तुम क्या करना चाहते हो… सच कहूं तो ये सवाल मुझसे भी कई बार हुआ…लेकिन जो मुझे लगता है वो ये कि जीवन का मकसद ना वक्त वक्त पर बदलता रहता है…समय के हिसाब से हम अपना मकसद बदल लेते है..देखों मेरे हिसाब से जब हम छोटे बच्चे होते है और स्कूल की किताबों के बोझ तले दबे होते है तो शायद हम सब की जिंदगी का एक इकलौता महालक्ष्य किसी तरह उस क्लास को पार कर दूसरी क्लास में जाना होता है…सीधे शब्दों में कहूं तो पास होना हमारे जीवन का लक्ष्य होता है..वक्त बदलता है तो जीवन का मकसद भी बदल जाता है…बड़े होने पर अच्छे और मनचाहे कॉलेज में एडमिशन भी हमारी जिंदगी का एक बड़ा लक्ष्य होता है,, और जब वो भी पूरा हो जाता है तो किसी और मंजिल पर हमारी निगाहें थम जाती है,,,कॉलेज के बाद नौकरी…नौकरी के बाद प्रमोशन…और उसके बाद क्या…बात यहीं खत्म नहीं होती…जिंदगी चलती रहती है..मकसद भी चलते रहते है बस रुप बदल बदल कर… हम सब की जिंदगी का मकसद अलग-अलग हो सकता है..मेरा मकसद अगर अच्छी नौकरी है तो किसी और का मकसद जिंदगी में मजे करना हो सकता है…किसी और का मकसद सब कुछ भूल कर खुद भी खो जाना..किसी का मकसद प्यार की राह में जिंदगी बिताना…तो किसी और मकसद कुछ और हो सकता है…लेकिन सवाल ये है कि क्या यहीं हमारे जीवन का मकसद है…जो चीज आज हमें खुशी देती है वो कल भी खुशी देगी इसकी कोई गारंटी नहीं है…कल हम उस चीज से ऊब भी तो सकते है…तो आखिर वो चीज हमारे जीवन का मकसद कैसे हो सकती है जिससे हम ऊब जाए..यहां जिसे पाने की खुशी ज्यादा दिन तक टिके ही नहीं…दरअसल हम इंसानों का एक नेचर होता है..कि हम ना तो किसी एक चीज से संतुष्ट होते है और ना हीं एक चीज तक सीमित रह सकते है…कई बार मुझे लगता है कि हम वो सब पाना चाहते है तो किसी दूसरे के पास होता है…नहीं नहीं यहां मुझे अपनी गलती सुधारनी चाहिए…दरअसल हम वो सब चाहते है जो हमारी पहुंच से दूर होता है..या जो हम से ऊंचे लोगों के पास होता…इस लाइन से कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो सकती है कि ऊंच नीच कुछ नहीं होता..लेकिन मेरा मकसद किसी की कोमल भावनाओं को आहत करना नहीं है..यहां ऊंचा से मतलब वहीं है जो आप समझ रहे है…हम सब आरामदायक जीवन जीना चाहते है…आरामदायक से मेरा मतलब मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने वाला जीवन नहीं…लक्जरी और शानदार जिंदगी से…शायद आरामदायक शब्द उस अर्थ को उतनी गहराई से नहीं समझा पा रहा था…लेकिन जो लोग लक्जीरियस लाइफ जीते है उनके जीवन का भी तो कुछ मकसद होता है…जैसे एक एक गरीब का मकसद अमीर होना…अमीर का और अमीर होना.. मंत्री का मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री होना होता…लेकिन क्या वो पड़ाव भी होता है जहां कोई इच्छा ना हो…कोई आकांक्षा ना हो…कोई मकसद ना हो….कौन सा रास्ता होता है जो किसी मकसद तक नहीं जाता…जहां इंसान को किसी मकसद ही लालसा ही नहीं होती….वहीं मकसद खोजना है मुझे…जिसे पाकर दिमाग और दिल या तो खाली हो जाए या इतना भर जाए कि जहां हवा तक जाने की गुंजाइश ना हो…वो मकसद जहां ना कोई गुरुत्वाकर्षण हो…ना कोई वेग और ना ही कोई बल….एक दम शून्य…,सब कुछ बस सिफर….सिफर से सिफर तक….