रोगी में जिस दोष का प्रकोप हुआ है, उसे देखते हुए तथा उसके शरीर की क्षमता के अनुसार मसाज के लिए तेल का चयन किया जाता है। नारियल अथवा सरसों के तेल में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलाकर मालिश के लिए उपयुक्त तेल तैयार किया जाता है।
मालिश के लिए सुबह का समय अच्छा होता है। मसाज हमेशा खाली पेट ही होना चाहिए। मसाज के समय व्यक्ति पूर्णतः तनावरहित हो। वहीं मसाज करने वाला व्यक्ति दक्ष हो। अभ्यंग मसाज से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में लाभ होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रक्त संचार ठीक होता है। जोड़ों में नमी पहुँचती है। विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर हो जाते हैं। अनिद्रा दूर होती है और स्वाभाविक नींद आती है। स्फूर्ति, ताजगी का आभास होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
मालिश के समय पैर, हथेली, उँगलियों व नाखून के छोरों पर तेल अच्छी तरह लगाएं क्योंकि यहां बड़ी संख्या में तंत्रिकाओं के छोर होते हैं जबकि पेट एवं हृदय जैसे संवेदनशील अंगों पर मसाज हल्के हाथों से करें।