एम्सटर्ड: यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम के रिसर्चर्स ने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ किए एक ताजा अध्ययन में बताया है कि हमारी हंसी हमें और लोगों से अलग कर देती है। इस स्टडी में डच और जापानी लोग शामिल थे।इसमें पाया गया कि सुनने वाले व्यक्ति हंसी सुनकर ही यह पता कर लेते थे कि उक्त व्यक्ति उसकी अपनी संस्कृति वाला है, या किसी और ग्रुप से है।स्वत: स्फूर्त मतलब सहज या अपने आप आने वाली हंसी को दोनों ग्रुप्स ने सबसे अधिक पॉजिटिव माना।
हंसी एक मजबूत सांकेतिक अभिव्यक्ति है, जो सहयोग और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का सिग्नल माना जाता है।लेकिन सहज हंसी और ऐच्छिक हंसी में अंतर होता है।सहज या अपने आप आने वाली हंसी विशुद्ध रूप से अनियंत्रित प्रतिक्रिया होती है।जैसे कि खुशी देने वाले किसी चुटकले को सुनकर आती है। इस हंसी में ध्वनिक विशेषताएं भी शामिल होती हैं।जबकि ऐच्छिक हंसी किसी उद्देश्य से वोकल एक्सप्रेशन के लिए मॉडुलेट की हुई होती है।ये ताजा रिसर्च बताती है कि हम सहज या अपने आप आने वाली हंसी के बजाय ऐच्छिक हंसी के माध्यम से ज्यादा पहचान कर पाते हैं।
ऐच्छिक हंसी में वोकल कंट्रोल ज्यादा होता है, जिसमें हंसने वाले व्यक्ति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं पता चलती है।जबकि भावनात्मक अभिव्यक्ति की हंसी व्यवस्थित रूप से सांस्कृतिक समूहों में अलग-अलग होती है।इस अंतर के आधार पर सुनने वाला व्यक्ति भावनाओं को ज्यादा सटीक ढंग से समझ पाता है और अपने सांस्कृतिक समूह वाले व्यक्ति की अन्य समूह के लोगों से स्पष्ट तौर पर कर पाता है।
इस स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने इस बात की भी पड़ताल की कि क्या हंसी के जरिये सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर किसी की पहचान हो सकती है या फिर ग्रुप्स के साथ भी ऐसा हो सकता है। इस स्टडी के लिए डच और जापानी लोगों के सहज और अपने आप आने वाली हंसी और ऐच्छिक हंसी वाले लाफ्टर क्लिप का इस्तेमाल किया गया।
डाटा का विश्लेषण करने पर रिसर्चर्स ने पाया कि सुनने वाले व्यक्ति ने अपने ग्रुप के सदस्यों की सहज और ऐच्छिक दोनों प्रकार की हंसी की बराबर पहचान की। सहज या अपने अपने आप आने वाली हंसी को ज्यादा पॉजिटिव रेट किया और दूसरे समूह के लोगों की तुलना में भी यही बात रही। उन्होंने बताया कि हमारी रिसर्च के निष्कर्ष में दिखा कि थोड़ी सी भी हंसी सुनकर लोगों ने बड़ी सटीकता से यह पहचान कर ली कि वह उनके अपने सांस्कृतिक समूह वाले हैं या किसी अन्य समूह से।