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सुब्रत रॉय की मौत के साथ दफन हो गए कई रहस्य

by newzgossip
2 years ago
in STATE, UTTAR PRADESH
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सुब्रत रॉय की मौत के साथ दफन हो गए कई रहस्य
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सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय की मौत के साथ ही कई ऐसे रहस्य दफन हो गए हैं,जिनका खुलना शायद भविष्य में भी संभव न हो पाए। इसमें पहला रहस्य तो यही है कि रॉय के पास 25 हजार करोड़ कहां से आए थे। इसका जवाब भविष्य में भी मिल पाएगा इसकी उम्मीद कम ही है। सहारा ग्रुप से लिए गए 25 हजार करोड़ रुपये अब भी शेयर मार्केट रेगुलेटर सेबी के पास रखे हुए हैं, जिन पर किसी ने भी दावा नहीं किया है। रहस्य बरकरार है कि इतना पैसा कहां से आया? निवेशकों को अपना पैसा वापस पाने के लिए पोर्टल खुले भी लगभग 10 साल हो गए हैं, मगर अभी तक केवल 138 करोड़ रुपये ही क्लेम किए गए हैं. 25,000 करोड़ में से केवल 138 करोड़।

जब इसी महीने 14 नवंबर को सुब्रत रॉय ने अंतिम सांस ली तभी से खबरें आना शुरु हो गई थीं कि सेबी के पास रखे बे-दावा 25,000 करोड़ रुपये सरकार के कंसोलिडेटेड फंड में जमा किया जा सकता है। मगर अहम सवाल वहीं का वहीं है कि हजारों करोड़ रुपये आए कहां से थे? किसके थे? कोई क्लेम करने क्यों नहीं आया? क्या ये पैसा आसमान से टपका था? हम इसे आसान भाषा में समझाने की कोशिश कर रहे हैं। 1978 में शुरू की गई सहारा कंपनी पंख फैलाकर भारत में छाने की तैयारी कर रही थी कि सब चौपट हो गया। 2010 से पहले सबकुछ ‘अच्छा’ चल रहा था। कंपनी लगातार बढ़ रही थी। सहारा ग्रुप, ग्रुप न होकर खुद को एक परिवार कहता था। परिवार की कहानी भी बड़ी रोचक है, आगे बताएंगे।

करीब 13 साल पहले वर्ष 2010 में सहारा ग्रुप की एक कंपनी ‘सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड ने बाजार नियामक सेबी के पास आईपीओ लाने के लिए डीआरएचपी जमा किया। हर कंपनी बाजार से पैसा उठाने से पहले ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) जमा करती है, जिसमें कंपनी से जुड़ी पूरी वित्तीय जानकारी होती है। कंपनी के पास कैश तो काफी था, मगर उसे अपनी ‘बड़ी योजनाओं’ को सिरे चढ़ाने के लिए और पैसे की जरूरत थी। कंपनी बढ़ते भारत के साथ खुद बढ़ने के लिए बड़े पुल, एयरपोर्ट्स, और रेलवे सिस्टम से जुड़े इंफ्राप्रोजेक्ट्स में हाथ डालना चाहती थी।

इसी कारण सहारा अपना आईपीओ लाना चाहती थी। ड्राफ्ट जमा होने के बाद सेबी उसे पूरी तरह से एनालाइज़ करता है। इसी प्रक्रिया में सेबी ने पाया कि सहारा ने अपनी 2 अन्य कंपनियों के माध्यम से पहले ही 19,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इसके लिए दोनों कंपनियों ने 2 करोड़ों निवेशकों से पैसा लिया था। ये दो कंपनियां थीं- सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड। बस, सेबी की इसी फाइडिंग के बाद से सहारा और सुब्रत रॉय के सितारे गर्दिश में जाने लगे।

सेबी ने सहारा से पूछा कि 19,हजार करोड़ रुपये कोई छोटी-मोटी राशि नहीं है। ऐसे में इतना बड़ा फंड जुटाने के बारे में आपने पहले जानकारी क्यों नहीं दी? सहारा की तरफ से जवाब आया कि फंड जुटाने की यह प्रक्रिया आम लोगों के लिए खुली नहीं थी। इसमें केवल मित्रों, कर्मचारियों, और सहारा ग्रुप के ही कुछ अन्य सदस्यों ने हिस्सा लिया था। कुल मिलाकर, यह एक प्राइवेट फंड रेज़ था। चूंकि बॉन्ड्स को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट नहीं किया जाना था, इसी वजह से सेबी को जानकारी नहीं दी गई।

दरअसल, सहारा की इन दोनों कंपनियों ने लोगों से पैसा जुटाए और इसके बदले में उन्हें ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कन्वर्टिबल अन-सिक्योर्ड डिबेंचर्स) दिए। पैसों के बदले में यह एक तरह की सिक्योरिटी थी कि जब कंपनी लिस्ट होगी तो निवेशकों को इसके बदले में शेयर मिल जाएंगे, जिन्हें बाजार में ट्रेड किया जा सकेगा। नियम कहते हैं कि इस तरह की प्राइवेट फंडरेजिंग हो सकती है, मगर वह तब तक ही प्राइवेट रहती है, जब तक कि उसमें 50 से कम लोग शामिल रहे हों। 50 से अधिक लोगों से इस तरीके से जुटाया गया फंड पब्लिश इश्यू में आता है, और इसके बारे में सेबी से परमिशन लेना जरूरी है।

हजारों करोड़ की कंपनी भला सेबी के आगे घुटने कैसे टेक देती? सहारा ने दावा किया कि यह पैसा उसने अपने ‘परिवार’ से जुटाया है। सहारा अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और खुद को एक परिवार कहता था। इसी ‘परिवार’ से पैसा जुटाने के लिए सहारा ने अपने 10 लाख एजेंट्स लगा दिए. लगभग 3 हजार ब्रांच ऑफिस खोले गए, जहां ‘परिवार के निवेशक’ अपना पैसा जमा करवा सकते थे। लगभग 3 करोड़ लोगों को निवेश के लिए आमंत्रित किया गया। आमंत्रित किए गए लोग जितना पैसा जमा करना चाहते थे, डाल सकते थे। यहां तक कि यदि कोई 20 रुपये देने आया तो उसे भी लौटाया नहीं गया।

Tags: death of Subrata Roysahara shreesecret of subrata roySubrata Roy
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