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Home Khabrein Jara Hat Ke

इटावा का सिद्धपीठ काली मंदिर जहां अश्वत्थामा सबसे पहले करते हैं पूजा, मंदिर की मान्यता सुनकर रह जाएंगे दंग

by newzgossip
2 years ago
in Khabrein Jara Hat Ke, UTTAR PRADESH
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इटावा का सिद्धपीठ काली मंदिर जहां अश्वत्थामा सबसे पहले करते हैं पूजा, मंदिर की मान्यता सुनकर रह जाएंगे दंग
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इटावा (Etawah) में यमुना-चंबल के तट पर मां काली का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे मान्यता है कि यहां महाभारत काल का अमर पात्र अश्वत्थामा आकर सबसे पहले पूजा करते हैं. यह मंदिर इटावा मुख्यालय से सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है. इस मंदिर का नवरात्रि के मौके पर खासा महत्व हो जाता है. इस मंदिर में अपनी अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्तगण आते हैं.

कहा जाता है सिद्धपीठ काली बांह मंदिर में एक जमाने में डकैतों की आना जाता लगा रहता था. डकैत माता रानी के दरबार में मनोकामना मांगने आते थे और दस्यु सरगना मंदिर में घंटा भी चढ़ाते थे. पुजारी के मुताबिक, महाभारत काल के अश्वत्थामा नवरात्र में आरती से पहले दरबार में फूल चढ़ाने आते थे. यमुना चंबल नदी के किनारे स्थित बीहड़ के जंगल में 500 साल प्राचीन मां काली देवी का सिद्धपीठ स्थान है. लाखों श्रद्धालु नवरात्र में दर्शन के लिए यूपी-एमपी के कई जिलों से आते हैं.

काली वाहन मंदिर में आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को साफ कर दिया जाता है और जब तड़के गर्भगृह खोला जाता है. उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते हैं जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है. कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वश्थामा मंदिर में पूजा करने के लिये आते हैं.

धार्मिक जानकार बताते हैं कि जब भगवान शंकर जी ने मां सती को कंधे पर रखकर नृत्य किया था, उस समय मां सती की बांह इसी स्थान पर गिरी थी. यहां मां सती का सिद्ध मंदिर है, जो भी व्यक्ति यहां आता है उन सभी की मनोकामना पूर्ण होती है. इस मंदिर का चमत्कारी प्रभाव इतना अधिक है कि नेता हो, अभिनेता या फिर डकैत सभी की आस्था इस मंदिर से जुड़ी रही है. डकैत भी अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहां झंडा और घंटा चढ़ाने आते थे.

इस मंदिर की महत्ता के बारे मे के.के.पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा. शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती जब तक कि उसके पक्ष में पुरातात्विक, साहित्यिक ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध ना हो जाएं. कभी चंबल के खूखांर डाकुओं की आस्था का केंद्र रहे महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े इस मंदिर से डाकुओं से इतना लगाव रहा है कि वो अपने गैंग के डाकुओं के साथ आकर पूजा अर्चना करने में पुलिस की चौकसी के बावजूद कामयाब हुए. लेकिन इस बात की पुष्टि तब हुई जब मंदिर में डाकुओं के नाम के घंटे और झंडे चढ़े हुये देखे गये.

इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है. यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केंद्र है. इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी संख्या में हैं. महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमायें हैं. इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है. वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है. मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां हैं- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती. महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक रूवरूप की देन है.

मार्कण्डेय पुराण और अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थी, एक बार वे भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो. पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया. मंदिर परिसर में एक मठिया में शिव दुर्गा एवं उनके परिवार की भी प्रतिष्ठा है. महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, काल्यानी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा.

काली वाहन मंदिर काफी पहले से सिनेमाई निर्देशकों के आकर्षण का केंद्र बना रहा है. निर्माता निर्देशक कृष्णा मिश्रा की फिल्म बीहड़ की भी शूटिंग का कुछ हिस्सा इस मंदिर में फिल्माया जा चुका है. बीहड़ नामक यह फिल्म 1978 से 2005 के मध्य चंबल घाटी में सक्रिय रहे डाकुओं की जिंदगी पर बनी है.

मंदिर के पुजारी सचिन गिरी का कहना है कि मंदिर में नवरात्रि की विशेष तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं. रात में यहां 4 आरतियां होंगी. इष्टिकापुरी का सबसे बड़ा सिद्ध पीठ मंदिर यहीं है. इस मंदिर में मां काली, मां सरस्वती, मां लक्ष्मी का पिंडी रूप है और यहां मां सती की बांह गिरी थी, इसलिए यह सिद्ध पीठ है. इटावा, कानपुर, फिरोजाबाद, आगरा और एमपी लगभग आसपास के जनपदों से लोग निरंतर आते हैं.

मंदिर के महंत सचिन दास ने बताया कि यह मंदिर 500 वर्ष पुराना है और हमारी छठी पीढ़ी इस मंदिर की सेवा कर रही है. वैष्णो देवी की तरह यहां मां काली, सरस्वती देवी, लक्ष्मी माता की प्रतिमाएं स्थापित हैं. माता सती की बांह यहां गिरी थी इसीलिए मंदिर काली बांह के नाम से जाना जाता है आज से 30 साल पहले यह मंदिर के आस पास बीहड़ के इलाके में था डकैतों का भी इस मंदिर में आना जाना था जिस कारण यहां लोग आने में काफी घबराते थे.

Tags: Chaitra Navratri 2023EtawahEtawah NewsSiddha Peeth Kali Mata templeUP NewsUP Temple
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